उत्तल लेंस: जब किसी व्यक्ति को कोई सूक्षम काम करने में किसी भी प्रकार की दिक्कत होती है । उसे लेंस का सहारा लेना परता है । अर्थात किसी लिखावट को पढ़ने के समय, इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स को ठीक करने के लिए भी लेंस का सहारा लेना पड़ता है । क्योंकि जब इलेक्ट्रॉनिक पार्ट्स को ठीक करते है । उस समय कुछ पार्ट्स को नंगी आँखों से देखना मुश्किल हो जाता है । तो साफ- साफ देखने के लिए uttal lens का सहारा लेना पड़ता है ।
उत्तल लेंस किसे कहते है:
वैसा लेंस जिसके दोनों सिरा चपटा हो एंव मध्य वाला भाग फुला हो । वह उत्तल लेंस कहलाता है । यह लेंस सभी आकार में आता है । छोटा आकार में भी एंव बड़ा आकार में भी यह लेंस उपलब्ध है । इस लेंस पर पड़ने वाला प्रकाश को इक्कठा करता है । तथा अभिसरित करता है । इसलिए इस लेंस को अभिसारी लेंस भी कहाँ जाता है । इस लेंस पर पड़ने वाला प्रकाश का प्रतिबिम्ब हमेशा वास्तविक, उल्टा एंव आभासी बनता है । इस लेंस का किनारे वाला भाग पतला एंव बीच वाला भाग अधिक मोटा होता है ।
उत्तल लेंस का प्रकार :
उत्तल लेंस तीन प्रकार के होते है :-
(i) उभयोत्तल लेंस
(ii) समतलोतल लेंस
(iii) अवतलोतल लेंस
(i) उभयोत्तल लेंस :- वैसा लेंस जो दो पृष्ट से मिलकर बना होता है । और जिनके दोनों पृष्ट उत्तल होते है । उसे उभयोत्तल लेंस कहाँ जाता है ।
(ii) समतलोतल लेंस :- वैसा लेंस जिसके एक पृष्ट समतल तथा दूसरा पृष्ट उत्तल होता है । उसे समतलोतल लेंस कहाँ जाता है ।
(iii) अवतलोतल लेंस :- वैसा लेंस जिसके दोनों पृष्ट अवतल होता है, वह अवतलोतल लेंस कहाँ जाता है ।
लेंस के मुख्य भाग :
(i) वक्रता केंद्र :- जिस गोले को काटकर लेंस का निर्माण होता है । उस गोले के केंद्र को वक्रता केंद्र कहाँ जाता है । क्योंकि उत्तल लेंस हो या चाहे अवतल लेंस हो सभी प्रकार के लेंस का निर्माण एक गोलीय पारदर्शी पदार्थ को काटकर ही बनाया जाता है ।
(ii) वक्रता त्रिज्या :- किसी भी प्रकार की लेंस का निर्माण जिस गोले को काटकर बनाया जाता है । उस गोले की त्रिज्या को वक्रता त्रिज्या कहाँ जाता है ।
इसे हमेशा r से सूचित किया जाता है ।
(iii) मुख्य अक्ष :- किसी भी लेंस के दोनों अक्षो को मिलाने वाली जो रेखा होता है । वह मुख्य अक्ष कहलाता है ।
(iv) प्रकाशिक केंद्र :- मुख्य अक्ष पर का वह बिंदु जहाँ से आपतित किरणे अपवर्तन के बाद सीधे निकल जाती है, तथा आपतित किरणें के समान्तर होती है । वह प्रकाशिक केंद्र कहाँ जाता है ।
(v) फोकस :- किसी भी लेंस में प्रकाशिक केंद्र एंव वक्रता केंद्र के मध्य जो बिंदु व्यवस्थित रहती है । वह फोकस कहलाता है । उत्तल लेंस में फोकस दुरी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है ।
फोकस के प्रकार :
फोकस दो प्रकार के होते है :-
(a) प्रथम फोकस
(b) द्वितीय फोकस
(a) प्रथम फोकस :- जब लेंस के मुख्य अक्ष के समान्तर आपतित किरणे, अपवर्तन के पश्चात मुख्य अक्ष के समान्तर हो जाती है । वह प्रथम फोकस कहलाता है ।
(b) द्वितीय फोकस :- मुख्य अक्ष के समान्तर आपतित किरणें अपवर्तन के बाद जिस बिंदु पर मिलती है, या मिलती हुई प्रतीत होती है । वह द्वितीय फोकस कहलाता है ।
(vi) फोकस दुरी :- किसी भी लेंस में प्रकाशिक केंद्र एंव फोकस के बीच की दुरी को फोकस दुरी कहाँ जाता है ।
इसे f से सूचित किया जाता है ।
(vii) ध्रुव :- किसी भी प्रकार की गोलीय दर्पण के मध्य बिंदु को ध्रुव कहाँ जाता है । इसे p द्वारा दर्शाया जाता है ।
(viii) द्वारक :- किसी भी प्रकार के गोलीय दर्पण की चौड़ाई को द्वारक कहाँ जाता है ।
लेंस की क्षमता :
जिस प्रकार कोई भी जीतनी ज्यादा कठिन काम करते है । उतनी ही बड़ी बहादुर कहाँ जाता है । ठीक उसी प्रकार लेंस जो प्रकाश की किरणें को जो मोरने की क्षमता रखती है । उसे लेंस की क्षमता कहाँ जाता है ।
इसे p से सूचित किया जाता है ।
जो लेंस किरणें को जीतनी ही अधिक मोड़ेगा । उसकी क्षमता उतनी ही अधिक होगी ।
उत्तल लेंस का उपयोग(uses of concave lens in hindi) :
उत्तल लेंस(uttal lens) का उपयोग काफी जगहों पर किया जाता है, कुछ जगहों का नाम निचे बताने की कोशिस कर रहे है । जहाँ पर उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है ।
उत्तल लेंस का प्रयोग निम्न जगहों पर किया जाता है :-
(i) उत्तल लेंस का प्रयोग, दूर दृष्टि दोष दूर करने के लिए किया जाता है ।
(ii) इस लेंस का प्रयोग, जब दूर स्थित वस्तुएँ को देखने के लिए दूरबीन का प्रयोग करते है । उसमें भी उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है ।(iii) जब घड़ी ख़राब हो जाता है । उसे मरम्त करने के लिए उत्तल लेंस का भी सहारा लेना पड़ता है ।
(iv) ज्योतिषी के द्वारा हस्त रेखा देखने में भी उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है ।
(v) प्रयोगशाला में वैज्ञानिक द्वारा भी इस लेंस का प्रयोग किया जाता है ।
(vi) सूक्ष्मजीव को देखने के लिए, जो सूक्षमदर्शी का निर्माण किया जाता है । उसमें भी उत्तल लेंस का प्रयोग किया जाता है ।
(vii) वाहनों में भी साइड मिरर के रूप में उत्तल दर्पण का प्रयोग किया जाता है ।
उत्तल लेंस में प्रतिबिम्ब की स्थिति:
इस लेंस में भी प्रतिबिम्ब की स्थिति विभिन्न प्रकार की बनती है । जिसकी जानकारी निचे दिए है :-
(i) जब वस्तु अनंत पर स्थित हो उसका प्रतिबिम्ब: जब वस्तु अनंत पर स्थित हो तो उसका प्रतिबिम्ब फोकस पर, वास्तविक, उल्टा एंव वस्तु से छोटा बनता है ।
(ii) जब वस्तु अनंत एंव वक्रता केंद्र के बीच स्थित हो : जब वस्तु अनंत एंव वक्रता केंद्र के बीच स्थित हो, तो उसका प्रतिबिम्ब अनंत एंव वक्रता केंद्र के बीच, वास्तविक, उल्टा तथा वस्तु के बराबर बनता है ।
(iii) जब वस्तु वक्रता केंद्र एंव फोकस के बीच स्थित हो : जब वस्तु वक्रता केंद्र एंव फोकस के बीच स्थित हो तो इसका प्रतिबिम्ब अनंत एंव वक्रता केंद्र के बीच, वास्तविक, उल्टा तथा वस्तु से बड़ा बनता है ।
(iv) जब वस्तु फोकस एंव ध्रुव के बीच स्थित हो : जब वस्तु फोकस एंव ध्रुव के बीच स्थित हो तो उसका प्रतिबिम्ब वक्रता केंद्र एंव अनंत के बीच, वास्तविक एंव उल्टा बनता है ।
(v) जब वस्तु ध्रुव पर स्थित हो : जब वस्तु ध्रुव पर स्थित हो तो उसका प्रतिबिम्ब अनंत पर, वास्तविक तथा उल्टा बनता है ।
निष्कर्ष : इस पोस्ट में उत्तल लेंस, उत्तल लेंस के कुछ महत्वपूर्ण भाग एंव उत्तल लेंस का उपयोग इत्यादि के बारे में बताने की कोशिस किये है । यदि इस ब्लॉग पोस्ट को पढ़ने के बाद किसी भी प्रकार की क्वेश्चन आपके मन में आती है । तो बिना समय गवाएं, कमेंट के माध्यम से हमसे संपर्क करे । उसका रिप्लाई हम जल्द से जल्द देने की कोशिस करेंगे ।
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