गुरुत्वाकर्षण बल(gravitational force): गुरुत्वाकर्षण से सम्बंधित मुख्य जानकारी

गुरुत्वाकर्षण बल: जब कभी हम किसी भी प्रकार की बल पर चर्चा करते है । उसमें गुरुत्वाकर्षण बहुत ही महत्वपूर्ण होता है । क्योंकि इसके बारे में जानने की इक्षा सबको होती है । इसको लेकर सबसे पहले टॉलमी ने दूसरी शताब्दी में अनुमान लगाया था की पृथ्वी सूर्य के मध्य में स्थित है । एंव बुध, शुक्र, मंगल एंव शनि इसके चारों ओर चक्कर लगाता है ।

उसके बाद सोलहवीं शताब्दी में कॉपरनिकस ने बताया की सूर्य के चारों तरफ सभी ग्रह चक्कर लगाता है । और यही से बात सिद्ध होने लगा । क्योंकि अभी भी इस बात को सत्य माना जाता है । की सूर्य के चारों तरफ सभी प्रकार की ग्रह चक्कर लगते रहते है ।

गुरुत्वाकर्षण बल की परिभाषा :

इस ब्रह्मण्ड के सभी कण एक दूसरे को आकर्षित करता है । तथा जिस बल से एक दूसरे को आकर्षित करता है । उस बल को गुरुत्वाकर्षण बल कहते है । इस बात की व्याख्या सर्वप्रथम न्यूटन साहब ने 1986 ईस्वी को स्पस्ट किया था ।

न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम : 

न्यूटन साहब के अनुसार दो द्रव्य कण के मध्य लगनेवाला आकर्षण बल, कण के द्रवमान के गुणनफल का सीधा समानुपाती होता है । तथा   मध्य के दुरी का व्युत्क्रमानुपाती होता है ।

यदि m1 एंव m2 दो द्रवमान है । जिसके बीच की दुरी r  है । एंव गुरुत्वाकर्षण बल F है । तो न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम के अनुसार,      F¬m1m2

F¬1/r2

F¬m1m2/r2

F¬Gm1m2/r2,  जहाँ  G  नियतांक है ।

गुरुत्वीय त्वरण :

पृथ्वी के गुरुत्वीय बल के कारण, जब कोई वस्तु पृथ्वी पर गिरती है । उसके परिवर्तन की दर को गुरुत्वीय त्वरण के अंतर्गत रखा जाता है । गुरुत्वीय त्वरण को हमेशा g  से सूचित किया जाता है । g का मान पृथ्वी तल पर 9.8 m/s2 होता है । इस मान को समुन्द्र तल के 45 डिग्री के आक्षांस तक मन जाता है ।

गुत्वाकर्षण क्षेत्र :

किसी भी प्रकार के द्रव्य कण अथवा द्रव्य कण तंत्र के चारों ओर के जो क्षेत्र होता है । उसमें भी अन्य द्रव्य कण के गुरुत्वाकर्षण बल का अनुभव होता है । इस क्षेत्र को द्रव्य कण क्षेत्र तंत्र का गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र के अंतर्गत रखा जाता है । 

गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की त्रिवता :    

किसी भी प्रकार के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में, किसी बिंदु पर गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की त्रिवता को इस बिंदु पर एकांक द्रवमान, गुरुत्वाकर्षण बल द्वारा ही परिभाषित किया जाता है । 

जहाँ,   I=F/m

गुरूत्वीय स्थितिज ऊर्जा :

गुरुत्वीय क्षेत्र में एक बिंदु पर रखे कण की गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा को, गतिज ऊर्जा में परिवर्तन किये बिना, उस बिंदु तक लाने में आवश्यक कार्य की मात्रा  द्वारा परिभाषित किया जाता है ।

गुरुत्वाकर्षण विभव : 

किसी भी प्रकार के द्रवमान पिंड के चारों ओर गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र को केवल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की त्रीवता द्वारा ही व्यक्त किया जाता है । इसे अदिश फलन द्वारा व्यक्त किया जाता है । जिसे गुरुत्वाकर्षण विभव कहाँ जाता है । इसे v  से  सूचित किया जाता है । इसकी साधारण परिभाषा की चर्चा करे तो एकांक द्रवमान को गतिज ऊर्जा में बीना परिवर्तन किये, अनंत से किसी बिंदु तक लाने में  जो  कार्य किया जाता है।  उसे  उस बिंदु पर गुरुत्वाकर्षण विभव कहाँ जाता है ।

g  के मान में परिवर्तन : 

g के मान में, स्थिति के अनुसार परिवर्तन होता है, जो निम्न है :-

(i) जब हम पृथ्वी के सतह से ऊपर या निचे जाते है । तो g का मान घटता है ।

(ii) यदि पृथ्वी की धुर्व की चर्चा करे तो धुर्व पर g का मान बढ़ता है ।

(iii) विषुवत रेखा पर हमेशा g  का मान घटता है ।

(iv) जब पृथ्वी की घूर्णन गति घटता है । तो g  का मान बढ़ता है ।

(v) जब पृथ्वी की घूर्णन गति बढ़ता है । तो g का मान घटता है ।

गुरुत्वाकर्षण की महत्वपूर्ण बातें ? 

गुरुत्वाकर्षण की कुछ महत्वपूर्ण बातें निम्न है :-

(i) यह बल हमेशा किसी न किसी को आकर्षित करने का काम करता है ।

(ii) यह दोनों द्रव्यमानों के मध्य के माध्यम पर निर्भर करता है ।

(iii) गुरुत्वीयकर्षण बल एक केंद्रीय बल होता है ।

(iv) गुरुत्वाकर्षण बल क्षेत्र एक संरक्षी  बल होता है ।

(v) ग्रह पर एक बल आरोपित होता है । जिसकी दिशा सूर्य की ओर होती है ।

न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम :

न्यूटन साहब ने जो भी नियम गुरुत्वाकर्षण के बारे में दिए थे वह न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण नियम कहलाता है ।

नियम :-  किसी  दो पिंडो के बीच कार्य करने वाले आकर्षण बल, पिंडो के द्रवमान के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच की जो दुरी होती है । उन दुरी के व्युत्क्रमानुपाती होता है ।

माना की दो पिंड है । जिनका द्रव्यमान m1 तथा m2 है । इनके बीच की दुरी r है । न्यूटन के नियम अनुसार, दो वस्तुओ के बीच लगने वाला आकर्षण  बल  का मान F= Gm1.m2/r2 होता है । जहाँ G  एक नियतांक होता है । इसे सार्वत्रिक नियतांक भी कहाँ जाता है ।

गुरुत्व से क्या समझते है :

न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण नियम के अनुसार दो पिंडो के बीच एक आकर्षण बल काम करता है । यदि जिसमे से एक पिंड पृथ्वी हो तो इस प्रकार के आकर्षण बल को गुरुत्व कहते है । गुरुत्व वह आकर्षण बल होता है ।

जिस बल से पृथ्वी किसी वस्तु को अपनी ओर खींचता है । इसी बल के कारण त्वरण भी उत्पन्न होती है । जिस त्वरण को गुरुत्व जनित त्वरण कहाँ जाता है । इस प्रकार के त्वरण को g  से  सूचित किया जाता है । गुरुत्व त्वरण आकार, रूप तथा द्रव्यमान पर कभी नहीं निर्भर करता है ।

निष्कर्ष : दोस्तों इसमें  हमने गुरुत्वाकर्षण, गुरुत्वाकर्षण बल क्या है, न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण के सार्वत्रिक नियम, गुरुत्वीय त्वरण, गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र, गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र की त्रीवता, गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा, गुरुत्वीय विभव एंव कुछ गुरुत्वाकर्षण की महत्वपूर्ण बातें इत्यादि के बारे में बताने की कोशिस किये है ।

अगर इसको पढ़ने के बाद किसी भी प्रकार की कोई भी क्वेश्चन बनती है । तो बेहिचक हमसे कमेंट के माध्यम से संपर्क करे । यदि इस वेबसाइट के द्वारा और भी जानकारी प्राप्त करना चाहते है । तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके अधिक से अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते है ।

लिंक click  here 

अन्य पाठ भी पढ़े :

 

1 thought on “गुरुत्वाकर्षण बल(gravitational force): गुरुत्वाकर्षण से सम्बंधित मुख्य जानकारी”

Leave a Comment