भ्रष्टाचार और लोकतंत्र हिंदी निबंध।

भ्रष्टाचार और लोकतंत्र: इस निबंध में हम भ्रष्टाचार और लोकतंत्र के बारें में अध्ययन करेंगे। यह दीर्घ निबंध है जो सभी विद्यार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। इस निबंध से यदि आपको कोई लाभ हुआ हो तो इसे दोस्तों के साथ सहरे करें।

भ्रष्टाचार और लोकतंत्र।

भ्रष्टाचार सर्वत्र व्याप्त है। सामाजिक-राजनीतिक जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में भ्रष्टाचार का बोलबाला है। भ्रष्टाचार का अर्थ है ‘भ्रष्ट आचरण। वह आचरण जो नैतिकता से विहीन हो। हमारा वह काम भ्रष्टाचार है जो हम अपने नैतिक दायित्वों के विरुद्ध करते हैं। भ्रष्टाचार का गहरा सम्बन्ध स्वार्थ से है। जब हम सार्वजनिक हितों को दाँव पर चढ़ाकर व्यक्तिगत स्वार्थों से प्रेरित होकर कोई काम करते हैं तो वही भ्रष्टाचार है। मनुष्य का जीवन व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन के दो तटों पर चलता है; जिसके बीच दायित्व की नदी बहती है। एक किनारे को भी प्रतिकूल होकर तोड़ने से दायित्व टूटता है और भ्रष्टाचार की बाढ़ आती है। भ्रष्टाचार का साधारण अर्थ है-मेहनत की कमाई को छोड़कर अनुचित साधनों से कमाई करना।

भ्रष्टाचार के कई रूप हैं। लोभ-लालच, चोरी-बेईमानी, कालाबाजारी, जमाखोरी तथा कामचोरी आदि सभी भ्रष्टाचार के नमूने हैं। भ्रष्टाचार कभी प्रकट होता है, कभी प्रच्छन्न रहता है। कभी वह स्थूल रहता है, कभी सूक्ष्म होता है। दफ्तरों में व घुओं की दस-बीस की घूसखोरी प्रकट भ्रष्टाचार है। लेकिन अपनी सरकार बचाने के लिए सांसदों को रिश्वत देना, देशी और विदेशी कम्पनियों के बड़े ठेके देते समय कमीशन के रूप में बड़ी रकमें ऐंठना, योजना के रुपयों को हड़प जाना, योजना की लागत से बहुत कम लागत पर कमजोर काम करवा देना आदि छोटे-बड़े भ्रष्टाचार के नमूने हैं।

सरकारी प्रतिष्ठानों में रद्दी मशीनें लगवाना, घटिया मालों की सप्लाई लेना, सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र के उत्पादों को रद्दी के भाव बिकवा देना-ये सभी काम भ्रष्टाचार के हैं। सरकारी प्रतिष्ठानों उद्योगों और कार्यालयों में व्याप्त भ्रष्टाचार के दो शक्तिशाली पुर्जे हैं अधिकारी-कर्मचारी, मंत्री-संत्री वर्ग और ठेकेदार या व्यापारी। इनके बीच के भ्रष्टाचार को कारगर रूप देशी-विदेशी बिचौलिये देते हैं। यह देश भ्रष्ट राजनीतिज्ञों द्वारा चलाया जा रहा है। इधर हाल के दिनों में रोंगोटे खड़े कर देनेवाले भ्रष्टाचार उजागर हुए हैं। बोफर्स कांड की अनुगूंज ने राजीव गाँधी की सरकार का तख्ता पलट दिया था। सेंट कीट्स जालसाजी कांड, लक्खूभाई ठगी कांड, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड, यूरिया घोटाला कांड, आवास घोटाला कांड, कोटा परमिट आवंटन घोटाला कांड, विदेशी चंदा घोटाला कांड और घोटाला कांडों का सिरमौर बिहार का बहुचर्चित अरबों रुपयों का पशुपालन घोटाला एवं अलकतरा घोटाला आदि घोटाला कांडों ने भारत के जन-जीवन, आर्थिक-जगत एवं राजनीति को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया है।

भ्रष्टाचार और लोकतंत्र।

चुनावों की गंदी राजनीति, चुनावों पर अंधाधुन्ध खर्च, व्यापारियों और उद्यमियों से चुनावी खर्चों के लिए बड़ी-बड़ी रकम चंदा के नाम पर वसूलना-यह सभी काम भ्रष्टाचार के हैं। बड़े-बड़े पदों पर बैठे राजनीतिज्ञ, मंत्री और अधिकारी बड़े-बड़े राष्ट्रीय महत्त्व के करारों के एवज में बड़ी-बड़ी रकमों की घूस ले रहे हैं। आज देश में रक्षा-सौदों के भ्रष्टाचार की चर्चा हर जुबान पर है। तहलका काण्ड एक ताजा उदाहरण है। थोड़े से लोभ और व्यक्तिगत लाभ के लिए लोगों ने राष्ट्रीय स्वतंत्रता को भी दाँव पर लगा दिया है। न जाने कितने ऐसे लोग हैं जिन्होंने काली कमाई को विदेशी बैंकों के खाते में जमा कर रखा है। हमारे देश का व्यापारी वर्ग भी अत्यन्त ही बेईमान और भ्रष्ट हो गया है। ये व्यापारी नकली माल तैयार कर ऊँचे दामों में बेचते हैं। जमाखोरी के द्वारा बाजारों में बनावटी अभाव पैदा करते हैं। चीजों की कीमतें जानबूझकर बढ़ा देते हैं। मिलावट, घटिया सामान, ऊँची दाम तथा कम माप-तौल व्यापारियों की आदत बन गयी है। सरकारी करों और राजस्व की चोरी में ये निपुण हो गये हैं। ये व्यापारी और उद्यमी चंद स्वार्थियों से मिलकर सरकारी उद्योगों को बर्बाद करने पर तुले रहते हैं।

कालेधन की समस्या हमारे देश में गम्भीर हो गयी है। कालाधन का सीधा सम्बन्ध भ्रष्टाचार से है। अवैध उपायों से कमाये धन को बड़े-बड़े उद्यमी, व्यापारी, सरकारी अधिकारी, मंत्री तथा राजनीतिज्ञ छिपा कर रखे हुए हैं। समाज में कालेधन की बढ़ोतरी के कारण हमारी सभी आर्थिक योजनाएँ विफल हो रही हैं। गरीबी और बेकारी बेहिसाब बढ़ रही है। भ्रष्टाचार ने एक राष्ट्रीय समस्या का रूप धारण कर लिया है। आज प्रतिदिन भ्रष्टाचारों और घोटालों सरकारी कोषों की लूट और गबन, दुरुपयोग और हेराफेरी के कांड उजागर हो रहे हैं। आम जनता को समझ में नहीं आ रहा है कि भ्रष्टाचार के इस दैत्य से देश को छुटकारा कैसे मिलेगा? भ्रष्टाचार अन्यत्र भी है। स्कूलों में, कॉलेजों में, विश्वविद्यालयों में भी भ्रष्टाचार व्याप्त हैं। प्रिंसिपल और शिक्षक दोनों बेईमान हो गये हैं। पढ़ाना छोड़कर वे इतर कामों में लग गये हैं। जनता भी इस दौड़ में शामिल हो गयी है। मौका मिलते ही वह छोटे या बड़े भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाती है। भ्रष्टाचार का रोना सभी रो रहे हैं। किन्तु इसके उन्मूलन के लिए किसी तरफ से भी ईमानदार प्रयास नहीं किया जा रहा है।

हमारा कोई राष्ट्रीय चरित्र रह ही नहीं गया है। जयप्रकाश बाबू ने कहा था कि बिना राष्ट्रीय सोच और राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण किये भ्रष्टाचार का अंत नहीं हो सकता। केवल कानून बना देने से इस समस्या का समाधान नहीं होगा। सच तो यह कि भ्रष्टाचार राष्ट्र के साथ द्रोह है, भयानक विश्वासघात है। इसकी सजा फाँसी से कम नहीं होनी चाहिए। इस समस्या के समाधान के लिए रातों रात धनी बनने का सपना छोड़ना होगा। अपनी कमाई, अपनी मेहनत पर जीने की आदत डालनी होगी। आलस्य, आरामतलबी, विलास, कामचोरी आदि की प्रवृत्ति त्यागनी होगी। संतोष, अपरिग्रह और त्याग की भावना को आत्मा में उतारनी होगी, तभी भ्रष्टाचार खत्म हो सकेगा। भ्रष्टाचार और लोकतंत्र

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