हुमायूँ: इस आर्टिकल में हम हुमायूँ के चरित्र के बारे में जानेगें और साथ ही प्रशासक के रूप में उनका मूल्यांकन भी करेंगे। इस लेख को विद्यार्थियों द्वारा परीक्षा के प्रश्न को हल करने में प्रयोग कर सकते है। यदि आपको कोई बात साझा करनी हो तो कमेंट कर सकते है।
हुमायूँ के चरित्र एवं व्यक्तित्व का मूल्यांकन।
लेनपूल के अनुसार, “हुमायूँ का अर्थ होता है ‘भाग्यशाली’ किन्तु शायद ही कभी किसी अभागे राजा का ऐसा असंगत नाम पड़ा हो।” (His नाम means ‘fortunate’ and never was an unlucky sovereign मोरे miscalled.) वास्तव में हुमायूँ एक व्यक्ति के रूप में श्रेष्ठ था, किन्तु एक शासक एवं सेनापति के रूप में असफल था। सभी इतिहासकार यह मानते हैं कि हुमायूँ एक सज्जन, उदार और आज्ञाकारी पुत्र था। उसके चरित्र में वे सभी गुण विद्यमान थे जो एक अच्छे व्यक्ति में मौजूद होने चाहिये। एक आज्ञाकारी पुत्र की भाँति उसने पिता की आज्ञा का पालन किया और अपने भाइयों के साथ उदारता एवं दयालुता का व्यवहार किया। वह पिता, पुत्र, पति एवं एक मित्र के रूप में सदा आदर्श रहा। फरिश्ता के अनुसार “वह बड़े शानदार डीलडौल का आदमी था।
रंग उसका ताम्रवर्ण का सा था। हुमायूँ के चरित्र में उदारता और कोमलता की मात्रा इतनी अधिक थी, जितनी इन सद्गुणों का रहना किसी व्यक्ति में सम्भव है।” एक व्यक्ति के रूप में : हुमायूँ अच्छे डीलडौल तथा गेहुँए रंग का आकर्षक व्यक्ति था। साधारणतया उसका स्वास्थ्य अच्छा रहता था। वह एक अच्छा घुड़सवार तथा तीरन्दाज था। स्वभाव से वह दयालु, विनम्र तथा स्नेहशील था। वह ठदार तथा क्षमाशील था। धन का लोभ उसमें तनिक भी न था वह एक सुसभ्य एवं सुसंस्कृत व्यक्ति था। वह फारसी, तुर्की और हिन्दी का ज्ञाता था। वह अपने सभी मित्रों एवं सगे-सम्बन्धियों से स्नेह रखता था। वह विनीत, समझदार और हँसमुख था। उसे संगीत से भी बड़ा प्रेम था। अपनी अत्यधिक दयालुता एवं ठदारता के कारण अपने सिंहासन को ही नहीं बल्कि अपने जीवन को भी उसने संकट में डाल लिया था।
अपने भाइयों को ही नहीं बल्कि मुहम्मद जमा मिर्जा और मुहम्मद सुल्तान मिर्जा जैसे विद्रोही रिश्तेदारों को भी उसने अपनी उदारता के कारण क्षमा कर दिया। इसलिये वे इसका अनुचित लाभ उठाते थे। उसे एक निर्बल व्यक्ति के रूप में समझा जाता था। लेनपूल के अनुसार “उसका चरित्र आकर्षक तो था किन्तु प्रभावशाली नहीं।” (His character attracts but नेवर dominates.) किन्तु उसके चरित्र में कुछ ऐसे दोष भी थे जिनके कारण उसके सभी गुण धरे के धरे रह गये और वह निस्सहाय हो कर पन्द्रह वर्षों तक दर-दर की ठोकरें खाता रहा। वह बड़ा ही शराबी, अफीमची, भोग-विलास में डूबा रहनेवाला, आलसी व्यक्ति था। अफीम के सेवन ने उसके मस्तिष्क को खोखला कर दिया था। वह बड़ा ही अस्थिर और चंचल हो गया था। किसी भी काम को पूरा किये बगैर दूसरे काम को वह शुरू कर देता था। समय की पहचान करने की क्षमता उसमें नहीं थी।
वह मितव्ययी कमी नहीं रहा। धन का अपव्यय वह भोग-विलास, सरदारों के बीच लुटाने एवं युद्धों में करता रहा। अतः धन का अभाव उसे बना रहा। उसमें दृढ़संकल्प शक्ति और निपुणता की कमी थी। एक विद्वान् एवं कला-प्रेमी के रूप में : हुमायूँ कला एवं साहित्य का प्रेमी और विद्वान् था। उसे गणित, भूगोल एवं ज्योतिषशास्त्र में गहरी रुचि थी। वह स्वयं एक शायर था और विद्वानों का आदर करता था। पढ़ने की ओर उसकी अभिरुचि अधिक थी। वह जहाँ भी गया अपना पुस्तकालय साथ लेता गया। उसके काल में अनेक उच्च कोटि के लेखक, कवि और इतिहासकार हुए। खावन्द मीर, जौहर उसके समकालीन थे, जिन्होंने हवीन-उस-सुजार एवं ताज-किरात-उल-बाकाइयात-ए-हुमायूँ जैसे ग्रन्थों की रचना की। लुब-तुल-तवारीख का लेखक अब्दुल लतीफ तथा दिल्ली मदरसा के विद्वान् प्राध्यापक शेख हुसैन भी हुमायूँ के दरबार में थे। उसे संगीत में बड़ी रुचि थी।
उसके काल में सप्ताह में दो बार संगीत-सभाएं होती थीं, जिसमें संगीतज्ञों को पुरस्कार दिये जाते थे। वह चित्रकला का भी प्रेमी था। ‘अमीरे-ए-दास्तान हम्जा’ उस काल के प्रसिद्ध चित्रों का संग्रह है। मीर सैयद अली तथा ख्वाजा अबू समद जैसे चित्रकार उसके संरक्षण में थे। वह एक निर्माता था। आगरा और हिसार जिले के फतहाबाद में उसने मस्जिदें बनवायी थीं। हुमायूँ को गणित, नक्षत्रशास्त्र तथा ज्योतिषशास्त्र का भी ज्ञान था। भाषण देने में भी वह चतुर था। एक धार्मिक व्यक्ति के रूप में : हुमायूँ एक सुन्नी मुसलमान था किन्तु धार्मिक कट्टरता उसमें नहीं थी। वह कुरान के नियमों का बड़ी सावधानी से पालन करता था और पाँचों वक्त नमाज पढ़ता था। ईश्वर पर उसका अटूट विश्वास था। उसे शिया लोगों से घृणा न थी। उसकी पत्नी और बहनोई बैरम खाँ शिया धर्म के मानने वाले थे। उसने हिन्दुओं के प्रति भी अहस्तक्षेप की नीति अपनायी और केवल कालिंजर-आक्रमण के समय हिन्दू मन्दिरों को तुड़वाया था।
किन्तु, धब्या लगने वाली बात फारस में उसका धर्म परिवर्तन था; फिर भी परिस्थितियों की देखते हुए इस पर अधिक ध्यान नहीं दिया जा सकता। एक सैनिक तथा सेनापति के रूप में : हुमायूँ व्यक्तिगत रूप से स्वस्थ और सुन्दर था। वह बड़ा वीर और साहसी था। उसमें धैर्य का बड़ा गुण था और भीषण विपरीत परिस्थितियों में भी वह नहीं घबराता था। किन्तु, वह बाबर अथवा शेरशाह जैसा योग्य सेनापति न था। उसके व्यक्तित्व में आकर्षण था, पर दवदवा न था और उसमें नेतृत्व करने की क्षमता नहीं थी। जो योद्धा सैनिक उसके पिता बाबर के प्रति वफादार थे और जिन्होंने उसके लिए अनेक युद्ध जीते थे, उन्होंने ही हुमायूँ के विरुद्ध विद्रोह किया। जो सेना बाबर की आज्ञा पर जान हथेली पर लेकर युद्ध करती थी, वही अब अनुशासनहीन और निकम्मी बन गयी थी। वास्तव में एक शराबी, अफीमची और भोग-विलास में डूबे रहने वाले हुमायूँ के नेतृत्व को वे स्वीकार भी क्यों करते?
इसी कारण हुमायूँ के सैनिक विजय अस्थायी ही रहे। एक प्रशासक एवं राजनीतिज्ञ के रूप में : हुमायूँ एक योग्य प्रशासक कभी नहीं रहा। उसमें राजनीतिक गतिविधियों को जानने की क्षमता न थी। उसमें राजनीतिक प्रतिभा, दूरदर्शिता एवं कूटनीति आदि गुणों का अभाव था। किसी निर्णय पर पहुँचने की क्षमता उसमें न थी। निरन्तर अफीम के सेवन ने उसे आलसी और निकम्मा बना दिया था। अध्यवसायी भी वह नहीं था और न ही मितव्ययी। न तो उसने प्रजा की भलाई के लिए ही कुछ किया और न शासन-प्रबन्ध के लिए कोई सुधार ही कर सका। वह अपने शत्रुओं से राज्य की रक्षा भी नहीं कर सका।
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