disease caused by protozoa : प्रोटोजोआ तथा प्रोटोजोआ से होने वाले रोग

disease caused by protozoa

प्रोटोजोआ: यह सूक्ष्मजीव  एककोशिकीय होता है । इस प्रकार के सूक्ष्मजीव लवणीय तथा अलवणीय जल में पाया जाता है । जहॉ तक की बात है, प्रोटोजोआ शब्द की खोज गोल्डफ़ास ने किया था । यह जीव सवतंत्र एंव परजीवी दोनों प्रकार के होते है । इस जीव में जनन की क्रिया लैंगिक एंव अलैंगिक  दोनों प्रकार के होते है ।

इस जीव में श्वसन की क्रिया विसरण की क्रिया द्वारा होता है । प्रोटोजोआ  कोशिका द्रव एंव केन्द्रक के द्वारा  बनी  होती है . जिसमे कोशिका द्रव के दो  भाग   होते  है । पहला  भाग  का नाम   बहिर्द्रव्य एंव  अंतर्द्रव्य है । जिसमे बहिर्द्रव्य का  कार्य रहता है । रक्षा, स्पर्शज्ञान और संचलन तथा  अंतर्द्रव्य का कार्य पोषण एंव  प्रजनन है ।

यह सबसे आदिकालीन तथा साधारण जन्तुओ का संघ है । जिसमे एक कोशिका के जंतु को रखा गया है । इस प्रकार के समूह के अंतर्गत आने वाले जंतु एक केंद्रीय तथा बहुकेन्द्रिय तथा विषम पोषी होता है । इसका नाम प्रोटोजोआ रखने का योगदान गोल्डफ़्स को दिया जाता है । अर्थात इसका नाम प्रोटोजोआ गोल्डफ़्स ने ही रखा था । यह एक कोशिकीय जीव होने के बावजूद भी सभी क्रियाये अर्थात पाचन, उत्सर्जन तथा प्रजनन सुचारु रूप से करते है । इसकी जाती की बात की जाये तो इसकी कुल जाती 80000 के आसपास है ।

 disease caused by protozoa : 

(i) जीवाणु द्वारा होने वाला रोग :-  मानव शरीर में जीवाणु द्वारा होने वाला रोग निमोनिया, टिटेनस, हैजा, डिप्थीरिया, काली खांसी, गोनोरिया, कोढ़ तथा  टाइफाइएड   इत्यादि  ।

(ii) विषाणु द्वारा होने वाला रोग :- मानव  शरीर में विषाणु द्वारा होने वाला रोग पोलियो , चेचक , खासरा , एड्स,  हाइड्रोफोबिया, इबोला, इंसेफलाइटिस, डेंगू, चिकनगुनिया इत्यादि .

(iii) कृमिजन्य द्वारा होने वाला रोग :- मानव में कृमिजन्य द्वारा होने वाला रोग फलेरिया, टिटेनस इत्यादि है .

(iv) प्रोटोजोआ से होने वाला रोग :- प्रोटोजोआ से होने वाला बीमारी  पेचिस, मलेरिया, निद्रा रोग, कालाजार, पायरिया इत्यादि है । 

इस प्रकार का बीमारी disease caused by protozoa है ।

प्रोटोजोआ के लक्षण:

प्रोटोजोआ का लक्षण निम्नलिखित है :-

(i) यह काफी सूक्षम, सहजीवी परजीवी तथा सवतंत्र परजीवी होता है ।

(ii) एक कोशिकीय शरीर का जीव द्रव्य, बाहा द्रव्य अन्तः द्रव्य में विभेदित हो जाता है ।

(iii) इस समुदाय का जीव कलिकायन, द्विविखण्डन, बहुविखण्डन तथा कभी- कभी सयुग्मन के द्वारा प्रजनन करता है (iv) यह एक केन्द्रिकीय तथा बहुकेन्द्रिय होता है ।

(v) इसमें संकुचन रसधानी, मृदुजलीय  प्रोटोजोआ में ही पाया जाता है । 

इसी सूक्ष्म जीव के कारण  disease caused by protozoa उत्पन्न होता है ।

प्रोटोजोआ का वर्गीकरण :

प्रोटोजोआ का वर्गीकरण निम्न प्रकार से किया गया है :-

(1) जुफलेजेलेटस

(2) सार्कोडाइन्स

(3) स्पोरोजोआ

(4) सिलिएटा

(1) जुफलेजेलेटस :- (i) इसमें कूटपाद मौजूद रहता है । तथा नहीं भी रहता है ।

(ii) जीव युग्लीना संरचना वाले तथा पर्णहरित रहित होता है ।

(iii) इसमें विषम पोसी पोषण , अवशोषण क्रिया के द्वारा होता है ।

(iv) यह निश्चित आकृति वाले होते है । तथा इसमें लंबवत विखंडन क्रिया के द्वारा अलैंगिक प्रजनन के द्वारा होता है ।

(2) सार्कोडाइन्स:- (i) यह सवतंत्र जीवी होता है ।

(ii) इसका प्रचलन फुटपाथ द्वारा होता है ।

(iii) आकार सामान्य तथा परिवर्तनशील होता है ।

(iv) इसका जो शरीर होता है । उसपर पेलिकल नहीं पाया जाता है । परन्तु सार्कोडाइन्स के चारो तरफ से सिलिका का कवच स्थापित होता है । जैसे की अमीबा तथा रेडियलेरिया इत्यादि ।

(3) स्पोरोजोआ:- (i) इसमें सभी परजीवी होता है ।

(ii) इसमें प्रजनन अंग नहीं होता है ।

(iii) जीवन चक्र में बीजाणु जनन पाया जाता है ।

(iv) यह कायिक अवस्था में अमीबा की तरह दिखलाई देता है । जैसे इसका उदाहरण के रूप में प्लाजोडियम है ।

(4) सिलिएटा:-  (i) इस  वर्ग के सभी जीवो में शिलिया पुरे शरीर या इसके कुछ भागो पर पाया जाता है ।

(ii) इसकी कोशिका में दो असमान सवभाव वाले केन्द्रक उपस्थित होता है ।

(iii) इसके शरीर पर पेलिकल आवरण के रूप में पाया जाता है ।

(iv) इसमें प्रजनन से सम्बंधित समस्त सक्रियता का निर्धारण लघुकेँद्रक करता है । इसमें गुणसूत्र का विशेष सेट पाया           जाता है । इसके उदाहरण के रूप में पैरामीशियम को माना जाता है

सहजीवी प्रोटोजोआ से क्या समझते है ?

जब दो जिव एक दूसरे से फायदे के लिए जब एक साथ रहते है । तो एक साथ रहने की प्रक्रिया सहजीविता कहलाता है । प्रोटोजोआ की कुछ जातिया होती है । जो सहजीवी सवरूप में अपना जीवन चक्र पूरा करती है । यह प्रोटोजोआ इस प्रकार की होती होती है । जो दीमक की लकड़ी खाने की शक्ति तथा पचाने की भी शक्ति रखती है ।

परजीवी प्रोटोजोआ से क्या समझते है ?

प्रोटोजोआ समूह के कुछ जीव परजीवी भी होते है । तथा यह दूसरे सजीव से पोषण भी प्राप्त करते है । प्रोटोजोआ के सभी वर्ग कुछ जीव परजीवी के रूप में पाया जाता है । इस प्रकार के परजीवी में शरीर के चारो तरफ आवरण के रूप में स्थित पैलिकल उसे पोषक के शरीर में स्रापित होने वाले एंजाइम के प्रति रक्षा करता है । इसके उदाहरण के रूप में मक्खी जब मलेरिया परजीवी को मनुष्य के शरीर में स्थापित करना चाहता है । तो उसके शरीर में मादा एनाफिलीज वाहक कार्य करती है ।

प्रोटोजोआ का ही एक रूप होता है । जिसका नाम संघ प्रोटोजोआ होता है, जिसका उल्लेख निचे किये है :-

संघ प्रोटोजोआ का निर्माण :

संघ  प्रोटोजोआ का निर्माण दो शब्दों अर्थात  protoz=फर्स्ट, zoon=एनिमल से मिलकर बना है ।

संघ प्रोटोजोआ की विशेषताएँ:

संघ प्रोटोजोआ की विशेस्ताएं निम्न है :-

(i) यह सवतंत्र जीवी, परजीवी तथा सहभोजी होता है ।

(ii) इसके शरीर नग्न तथा पोलिकिल द्वारा ढका रहता है । इसमें कुछ जंतु कठोर खोल में बंद रहता है ।

(iii) इस संघ के जंतु में कोई उत्तक या अंग नहीं होता है । इसमें पाए जाने वाले आकृति को अंगक कहाँ जाता है । इसी कारण से इस प्रोटोजोआ के जिव द्रव्य के स्तर पर पाए जाने वाला जंतु को गठित जंतु कहते है ।

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