kavak kya hai : इसका दूसरा नाम फफूंद भी है । इसे बढ़ने का समय है । जब आंद्रता बढ़ने लगता है । उस समय में फफूंद की संख्या बढ़ने लगती है । साथ में वर्षा ऋतू में फफूंद की संख्या बढ़ना प्रारम्भ हो जाती है । मछली के अंडे, स्पान, नवजात शिशु एंव बड़ी मछलिया जल्दी फफूंद से परेशान हो जाती है । kavak kya hai इसकी परिभाषा निचे बताने की कोशिस करते है ।
कवक की परिभाषा :
यदि kavak kya hai इसकी परिभाषा कहाँ जाये तो इसकी परिभाषा होता है – वैसा जीव जो परजीवी या मृतोपजीवी होते हैं। जो बीजाणुओं के द्वारा जनन करते हैं। तथा सर्वव्यापी होते हैं । उसे कवक के अंतर्गत रखा जाता है ।
यह बहुकोशिकीय जिव होता है । इसकी प्रजनन बीजाणुओं के द्वारा होता है । इनका शरीर विभिन्न प्रकार के तंतुओ द्वारा बना होता है । यह जिव आपस में मिलकर तंतु जाल बना लेते है । कवक भूमि पर जो कचरा पदार्थ पड़ा हुआ रहता है । उसे अपघटित करके दूसरे पदार्थ में परिवर्तित कर देता है ।
दूसरे रूप में बदले हुए पदार्थ उर्वरक के रूप में काम करता है । कुछ कवक तो ऐसे भी होते है । जिसे खाने में भी प्रयोग किया जाता है । बहुत से खाने वाले कवक में से एक का नाम मशरूम है । जिसमे काफी मात्रा में प्रोटीन पाया जाता है ।
कवक एंव ईस्ट का प्रयोग किण्वन द्वारा शराब में किया जाता है ।
कवक का लक्षण :
जब कवक प्रभाव करता है, उसका लक्षण है:-
(i) इसके प्रभाव से जबड़े फूल जाता है । और अंधापन आने लगता है ।
(ii) पैक्टोरलफिन और काँडलफिन के जोड़ पर खून जमा हो जाता है ।
(iii) रोगग्रस्त भाग पर रुई के सामान गुच्छे प्रभाव दिखाने लगता है ।
(iv) जिस मछली में कवक प्रभाव कर देता है । उसमें मछली कमजोर और सुस्त हो जाता है ।
कवक द्वारा होने वाले बीमारी का इलाज :
कवक द्वारा होने वाले बीमारी का इलाज निम्न प्रकार से किया जाता है :-
(i) 250 पी.पी.एम. का फार्मिलिन घोल बनाकर मछली को स्नान कराये ।
(ii) प्रतिशत सामान्य नमक के घोल द्वारा मछली को विशेषकर गलफड़ों से धोना चाहिए ।
(iii) जल का 1-2 पी.पी.एम. कॉपर सल्फेट (नीला थोथा) के द्वारा उपचार करा देना चाहिए ।
(iv) पोखर में 15-25 पी.पी.एम. के अनुपात से पी.पी.एम. डाले ।
कवक द्वारा मनुष्य में उत्पन्न होने वाला रोग :
कवक द्वारा मनुष्य में उत्पन्न होने वाला रोग निम्न है :-
बीमारी का नाम | प्रभावित अंग | रोगकारक कवक का नाम |
ऐम्पेर्जिलस-आर्ति | कान तथा फेफड़े | ऐम्पर्जिलस फ्लेक्स, ऐ फ्यूमिगेटस |
परागज ज्वर | समस्त शरीर | आल्टर्नेरिया, हेल्मिन्थोस्पोरिम फोमा |
दाद | त्वचा | माइक्रोस्पोरम लेनोसम |
छाले होना | गला व मुँह | ए. नाइजर |
कवक के द्वारा पौधों में होने वाला रोग :
रोग का नाम | पोषी पादप | रोगकारी कवक का नाम |
पपीता का फल विगलन | पपीता | पाइथियम एफानीडरमेटम |
क्रूसीफेर का मूदुरोमिल आसिता | मूली, शलगम, गोभी, सरसों | पेरोनोसपोरा पैरासाइटिका |
आलू का विलंबित अंगमारी | आलू | फाइटोप्थोरा इनफेसटेन्स |
अंगूर का मूदुरोमिल आसिता | अंगूर | (Peronospora viticola) |
बाजरा का मूदुरोमिल आसिता | बाजरा | स्क्लेरोस्पोरा ग्रेमिनीकोला |
क्रूसीफेर का सफेद किट्ट | मूली, शलगम, गोभी, सरसों | एल्ब्यूगो कैनडिडा |
गेहूँ का चूर्ण आसिता | गेहूँ, बाजरा, आदि | इरीसाइफी ग्रेमीनिस |
गेहूँ का श्लथकंड | गेहूँ | अस्टीलेगो ट्रीट्रीसी |
करनॉल बंट | गेहूँ | टिल्लेटीया इन्डिका |
धान का बंट | धान | टिल्लेटिया बारक्लायाना |
जौ का श्लथ कंड | जौ | अस्टीलेगो नूडा |
बाजरा का कंड | बाजरा | टोलीपोस्पोरियम पेनिसिलेरी |
जौ का आवृत कंड | जौ | अस्टीलेगो होरडी |
काला किट्ट | गेहूँ | पक्सीनिया ग्रेमीनिस ट्रीटीसी |
भूरा किट्ट | गेहूँ | पक्सीनिया रीकॉडिटा |
पीला किट्ट | गेहूँ | पक्सीनिया स्ट्रीफॉरमिस |
सेम का किट्ट | लोबिया, चना, राजमा, सेम | यूरोमाइसेस एपेन्डीकुलेटम |
कॉफी का किट्ट | कॉफी | हेमीलिया वास्टट्रिक्स |
अरहर की म्लानि | अरहर | फ्यूसेरियम ऑक्सीस्पोरम |
कपास की म्लानि | कपास | फ्यूसेरियम वासिनफेकटम |
आलू का पूर्व अंगमारी | आलू | आल्टरनरिया सोलेनाई |
टिक्का रोग | मूंगफली | सरकोस्पोरा एराचीडीकोला |
लाल विगलन | गन्ना | कोलेटोट्राइकम फल्कोटम |
बाजरा का अरगॉट | बाजरा | क्लेवीसेप्स माइक्रोसिफोला |
धान का पाद विगलन | धान | फ्यूसेरियम मोनिलीफॉरमे |
चना की म्लानि | चना | फ्युजेरियम ऑर्थेसीरस |
ज्वार का कंड | ज्वार | स्फेसीलोथीका सौर्घाइ |
गेहूँ का फ्लेग कंड | गेहूँ | यूरोसिस्टिस ट्रिटीसाइ |
गन्ना का कंड | गन्ना | अस्टिलागो साइलेमिनी |
कवक की पोषण विधि एंव प्रकार :
यदि पोषण की आधार पर विभाजन किया जाये तो कवक तीन प्रकार के होते है :-
(i) सहजीवी
(ii) परजीवी
(iii) मृतोपजीवी
(i) सहजीवी :- इस प्रकार के कवक दूसरे पौधे के साथ उगते है । तथा दूसरे पौधे के साथ- साथ उगने के आलावा दूसरे पौधे को लाभ भी पहुँचाता है । इसके उदाहरण के तौर पर बात किया जाये तो इसका उदाहरण लाइकेन होता है ।
(ii) परजीवी:- इस प्रकार का कवक अपना भोजन जन्तुओं एंव पौधों के जीवित ऊत्तकों से प्राप्त करते है । इस समूह के कवक हमेशा हानिकारक ही होता है । इसके उदाहरण की तौर पर बात किया जाये तो इसका उदाहरण पाक्सिनिया, अस्टिलेगो इत्यादि होता है ।
(iii) मृतोपजीवी:- इस प्रकार का कवक हमेशा सरे गले तथा कार्बनिक पदार्थ से प्राप्त करते है । इसका उदाहरण राइजोपस, पेनिसिलिन, मोर्चेल्ला इत्यादि मृतोपजीवी का उदाहरण है ।
कवक का महत्त्व :
कवक निम्नलिखित प्रकार की लाभदायक क्रियाएँ तथा हानिकारक क्रियाएँ उत्पन्न करती है ।
लाभदायक क्रियाएँ :-
(i) कवक से ही कई प्रकार का अम्ल का निर्माण किया जाता है । जैसे की अम्ल का उदाहरण अस्पर्जिलस है ।
(ii) एस्पर्जिलस, पेनिसिलियम इत्यादि प्रकार के कवक का उपयोग पनीर उद्योग में किया जाता है ।
(iii) यीस्ट नामक का कवक का उपयोग अल्कोहल उद्योग में किया जाता है ।
(iv) एगेरिकस छत्रक, गुच्छी इत्यादि प्रकार के कवक का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है ।
हानिकारक क्रियाएँ :-
(i) राइजोपस, पेनिसिलियम इत्यादि प्रकार का कवक भोजन को नष्ट कर देता है ।
(ii) कवक जंतु में भी कई प्रकार के बीमारी को उत्पन्न कर देते है ।
(iii) कुछ चीजें जो हमारे दैनिक जीवन में उपयोग होता है । जैसे की लकड़ी, कागज एंव कपड़ा इत्यादि कवक को नष्ट कर देते है ।
निष्कर्ष : दोस्तों इस ब्लॉग में कवक, kavak kya hai, कवक किसे कहते है, कवक का प्रयोग कहाँ- कहाँ पर किया जाता है, कवक का लक्षण, कवक द्वारा होने वाला रोग, कवक द्वारा होने वाला बीमारी का इलाज, कवक द्वारा मनुष्य में होने वाला रोग, कवक द्वारा पादपों में होने वाला रोग इत्यादि के बारे में बताने की कोशिस किये है ।
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