what is magnet
यह लोहे से बनी वस्तु को अपनी ओर आकर्षित करता है । वह चुंबक कहलाता है । यह what is magnet का बहुत ही सरल परिभाषा है । चुंबक में ध्रुव वह बिंदु होता है । जहाँ पर किसी अन्य वस्तु को खींचने की शक्ति सबसे अधिक हो वह ध्रुव के अंतर्गत आता है । जब हम किसी चुंबक को लटकाते है । तो उसका एक सिरा उत्तरी ध्रुव की ओर तथा दूसरी सिरा दक्षिणी ध्रुव की ओर की दिशा होकर स्थिर होता है ।
चुंबक का ध्रुव :
चुंबक में दो प्रकार के ध्रुव होते है:-
(i) उत्तरी ध्रुव
(ii) दक्षिणी ध्रुव
(i) उत्तरी ध्रुव : चुंबक का वैसा दिशा या भाग जो उतर की ओर मुड़कर स्थिर होती है । वह उत्तरी ध्रुव कहलाता है ।
(ii) दक्षिणी ध्रुव :- चुंबक का वैसा भाग जो दक्षिण दिशा की ओर घूमकर स्थिर रहता है । वह दक्षिणी ध्रुव के अंतर्गत आता है ।
what is magnet:चुम्बकीय अक्ष
जब किसी चुंबक में दो ध्रुवो को मिलाने वाली रेखा होती है । वह चुम्बकीय अक्ष कहलाता है ।
सजातीय चुम्बकीय ध्रुव एक दूसरे हमेशा प्रतिकर्षित करते है तथा विजातीय चुम्बकीय ध्रुव एक दूसरे को हमेशा आकर्षित करते है ।
चुम्बकीय पदार्थ का प्रकार :
चुम्बकीय पदार्थ दो प्रकार के होते है :-
(i) चुम्बकीय पदार्थ
(ii) अचुम्बकीय पदार्थ
(i) चुम्बकीय पदार्थ :- वैसा पदार्थ, जिसे चुम्बक आकर्षित करता है । वह चुंबकीय पदार्थ कहलाता है । इसका उदाहरण लोहा, निकेल तथा कोबाल्ट इत्यादि चुम्बकीय पदार्थ का उदाहरण है ।
(ii) अचुम्बकीय पदार्थ :- वैसा पदार्थ, जिसे चुम्बक आकर्षित नहीं करता है । वह अचुम्बकीय पदार्थ कहलाता है । इसका उदाहरण कगज, पीतल, प्लास्टिक तथा पीतल इत्यादि अचुम्बकीय पदार्थ का उदाहरण है ।
चुम्बकीय क्षेत्र एंव चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ:
किसी भी चुम्बक में ध्रुव को पता लगाने के लिए कंपास सुई का सहारा लेना पड़ता है । जब किसी कंपास सुई के निकट कोई चुम्बक या चुम्बकीय पदार्थ नहीं होता है । तो सुई उत्तर, दक्षिण दिशा में स्थिर रहता है । परन्तु जब चुम्बक या चुम्बकीय पदार्थ को सुई के निकट लाते है । तो सुई विक्षेपित हो जाती है । ऐसा इसलिए होता है । क्योंकि उसके अगल बगल में चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है । चुम्बकीय क्षेत्र को चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ द्वारा दर्शाते है ।
what is magnet:चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ का गुण:
चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ के निम्नलिखित गुण होते है :-
(i) किसी चुम्बक के अंदर जब चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र- रेखाएँ एक संतत बंद वक्र होता है । तथा चुम्बक उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश करता है । तथा पुनः चुम्बक के भीतर होती हुई उत्तरी ध्रुव पर आकर रूकती है ।
(ii) चुम्बक के, चुम्बकीय ध्रुव के समीप क्षेत्र रेखाएँ घनी होती है । परन्तु जैसे- जैसे उनकी दुरी ध्रुवो से बढ़ती जाती है । उसका घनत्व भी घटता जाता है ।
(iii) क्षेत्र-रेखा के किसी बिंदु पर खींची गई स्पर्शरेखा क्षेत्र रेखा की दिशा को बताती है ।
(iv) चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ एक- दूसरे को कभी नहीं काटती है । अगर एक दूसरे को काटती है, तो स्पर्शरेखाऐ खींचना संभव हो जाता है ।
विधुत- धारा, चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न का कारण:
सन 1820 ईसवी में ऑस्ट्रेड नामक वैज्ञानिक ने यह पता लगाया की, जब किसी भी चालक तार से विधुत धारा प्रवाहित की जाती है । तब चालक के चारों ओर जब चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है ।
परिनालिका के कारण चुम्बकीय क्षेत्र :
जब किसी भी विधुत रोधित तार को सर्पिल के रूप में इस प्रकार लपेटा जाता है । की फेरे एक दूसरे से अलग, तथा एक दूसरे के अगल बगल हो तो इस प्रकार की व्यवस्था को परिनालिका कहते है ।
जब परिनालिका के खुले सिरे को एक बैटरी तथा जब स्विच को बंद करके धारा प्रवाहित की जाती है । तो परिनालिका के भीतर तथा उसके आसपास चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है ।
magnetic effect of electric current: विधुत चुम्बक
जब किसी परिनालिका में धारा प्रवाहित होती है । तब वह परिनालिका चुम्बक जैसा व्यव्हार करता है । तथा जब परिनालिका में धारा का परवाह जब बंद कर दिया जाता है । तो उस परिनालिका में चुम्बकत्व नष्ट हो जाता है । इस प्रकार के चुम्बक को विधुत चुम्बक कहते है ।
जब नरम लोहे के छड़ को परिनालिका में बंद कर दिया जाता है । उससे एक चुम्बक तैयार होता है । नरम लोहे को बहुत ही आसानी से चुम्बकित तथा विचुम्बकित किया जा सकता है । जब परिनालिका से विधुत धारा प्रवाहित किया जाता है । उसमें चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है । जिसके कारण नरम लोहे का छड़ शक्तिशाली चुम्बक बन जाता है । जब नरम लोहा अपना चुम्बकत्व खो जाता है । तो परिनालिका में रखे गए छड़ को क्रोड कहाँ जाता है ।
क्रोड, जब धारा के कारण चुम्बक बनता है । इस प्रकार से बने चुम्बक के चुम्बकत्व की त्रीवता निम्न बातों पर निर्भर करता है :-
(i) विधुत धारा का परिमाण
(ii) परिनालिका में फेरों की संख्या
(iii) क्रोड की पदार्थ की प्रकृति
(i) विधुत धारा का परिमाण :- जब किसी चालक तार जीतनी परिमाण वाली धारा प्रवाहित होती है । चुम्बकीय क्षेत्र भी उतनी प्रबल प्रवाहित होती है ।
(ii) परिनालिका में फेरो की संख्या:- जब किसी तार में फेरों की संख्या अधिक होती है । तो चुम्बकत्व भी अधिक होता है ।
(iii) क्रोड की पदार्थ की प्रकृति : जब परिनालिका में नरम लोहे का प्रयोग किया जाता है । तो उसका चुम्बकत्व भी अधिक होता है ।
what is magnet:धारावाही चालक पर चुम्बकीय क्षेत्र का प्रभाव
कोई भी धारावाही चालक तार अपने आस-पास चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है । विधुत चुम्बकीय क्षेत्र में रखे चुम्बक का ध्रुवो पर, बल लगता है । अगर यह चुम्बक विक्षेपित होने के लिए सवतंत्र रहता है । तो वह विक्षेपित हो जाता है । इसी प्रकार से जब स्थिर चुम्बक के चुम्बकीय क्षेत्र में एक धारावाही चालक को रखा जाता है । तो उस चालक पर बल लगने लगता है ।
निष्कर्ष: दोस्तों इस ब्लॉग पोस्ट में हमने चुम्बक, what is magnet,चुम्बक का ध्रुव, चुम्बकीय क्षेत्र, चुम्बकीय क्षेत्र एंव रेखाएँ , चुम्बकीय क्षेत्र रेखाएँ का गुण, विधुत धारा एंव चुम्बकीय क्षेत्र रहने का गुण, परिनालिका के कारण चुम्बकीय क्षेत्र, विधुत चुम्बक, धारावाही चालक पर चुम्बकीय क्षेत्र का प्रभाव इत्यादि के बारे में बताने की कोशिस किये है ।
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